New Articles

Tuesday, December 16, 2014

1) Ramayanam in one sloka

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम् |
वालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लङ्कापुरीदाहनं
पश्र्चाद्रावणकुम्भकर्णहननमेतद्धि रामायणम् ||.

Adau Rama Tapovanadi Gamanam Hatvamrigam Kanchanam
Videhi Haranam Jatayu Maranam Sugriva Sambhashanam
Vali Nigrahanaqm Samudratharanam Lankapuridahanam
Paschat Ravana Kumbhakarnaharanam Ethadhi ramayanam

Once Rama went to forest,He chased the deer,Sitha was kidnapped,Jatayu was killed, There were talks with Sugreeva,Vali was killed,The sea was crossed,Lanka was burnt,And later Ravana and Kumbha karna,Were also killed.This in short is the story of Ramayanam.

2) Bhagavatham in one sloka

आदौ देवकीदेवीगर्भजननम् गोपीगृहे वर्धनम्
मायपूतनिजीवितापहरणम् गोवर्धनोद्धारणम्
कम्सच्छेदनकौरवादिहननं कुन्तीसुतपालनम्
श्रीमद्भागवतम् पुराणकथितं श्रीकृष्ण लीलामृथम्

Adau Devaki Deva Garbhajananam Gopigrihe
Vardhanam Mayaputhana Jeevithapaharanam Govardhanodaranam
Kamsachedana Kauravadihananam Kunthi Sutha Palanam
Ethadbhagavatham Puranakaditham Srikrishna Leelamritham

Born to queen Devaki, Brought up by Gopis, Took out the life of Ogress Poothana, Lifted the Govardhana mountain, Beheaded his uncle Kamsa, Helped in killing the Kouravas, And looked after the children of Kunthi. This is in short the ancient story of Bhagawatha,Which describes the nectar like play of Lord Krishna

3) Mahabharatam in one sloka

Aadhau Pandava-Dhartarashtra-jananam Laakshaa-grihe Daahanam
Dyootam Sreeharanam Vané Viharanam Matsyaalayé Vartanam
Leelagograhanam Rane Viharanam Sandhi-kriya-jrumphanam
Paschat Bheeshma-drona, duryodhanaadi Nidhanam Etat Mahabharatam

(With) the birth of sons of Pandu and Drthrashtra and (failed attempt) of burning alive Pandavas) in a wax house, Wealth grabbed illegally, exile in forests (of Pandavas), retreat in the house of Matsya (Kingdom) cows stolen and rescued, in battle, Attempts for compromise (between the Pandavas and Karavas by Lord Krishna) failed, Bhishma, Drona Duryodhana and others killed, is MAHABHARATA

4) Gita in one sloka

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः
यत्र श्रीर्विजयो भूति र्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

(Though this sloka does not talk about the teaching of Gita, It is termed as Eka Sloki Gita. It is also included in the Vishnu Sahasranamam)

Yathra Yogeeswara Krushno, Yatha Partho Dhanurdhara,
Thathra srirvijayo bhoothir, Druva neethir mama."
(BG, Chapter 18, Verse,78)

'Where Krishna the God of Yogis is there,And where Arjuna , the expert archer is there,Wealth , victory, improvement and Justice,Will be there definitely for ever.'
Avinayamapanaya vishno, damaya mana, samaya vishaya mruga thrushnam,
Bhootha dayaam vistharaya, tharaya samasara sagaratha ॥1॥

Divya dhooni makarande parimala pari bhoga sachidanande,
Sripathi padaaravinde bhava bhaya khedha chidhe vande ॥2॥

Sathyapi bhedhapagame nadha thwaham na mamakeenasthwam,
Saamudhro hi tharanga kwachana samudhro na tharanga ॥3॥

Udhruthanaga nagabhidanuja dhanukalaa mithra mithra sasi drushte,
Drushte bhavathi prabhavathi na bhavathi kim bhava thiraskara ॥4॥

Mathsyadhi biravathaarai ravatharavatha avatha sadha vasudham,
Parameshwara paripalyo bhavatha bhava thapa bheethoham ॥5॥

Dhamodhara guna mandira sundara vadanara vinda govinda,
Bhava jaladhi madhana mandhara paramam dharamapanaya thwam mey ॥6॥

Narayana karunamaya saranam karavani thawakou charanou,
Ithi shadpadhee madheeye vadhana saroje sada vasathu ॥7॥

Saturday, December 6, 2014

 आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित दिव्य मंत्रावली 

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनुठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि ‍साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था।
यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है। इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा शिवशंकर को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है।
हम कल्पना में ही उन्हें रत्नजडित सिहांसन पर आसीन करते हैं, दिव्य वस्त्र, भोजन तथा आभूषण आदि अर्पण करते हैं।आप सभी शिव भक्तो के लिए प्रस्तुत है हिन्दी अनुवाद सहित शिव मानस पूजा-

रत्नैः कल्पितमानसं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम्‌ मृगमदा मोदांकितम्‌ चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥1॥

हिन्दी भावार्थ - मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए।

सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र घृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयो दधियुतं रम्भा फलं पानकम्‌॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥

हिन्दी भावार्थ -- मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

छत्रं चामर योर्युगं व्यंजनकं चादर्शकं निर्मलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3॥

हिन्दी भावार्थ - हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपकी प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोप भोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4॥

हिन्दी भावार्थ - हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

कर चरण कृतंवा क्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥5॥

हिन्दी भावार्थ - हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।

इस अत्यंत सुंदर भावनात्मक स्तुति को हम बिना किसी साधन और सुविधा के कर सकते हैं। मानसिक पूजा शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।
इस शिव मानस पूजा को आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। बस तन और मन की शुद्धता अनिवार्य है। मन से शिव-पार्वती के सुंदर स्वरूप की कल्पना कीजिए और समस्त सामग्री इन मंत्रों से अर्पित कीजिए, भगवान भोलेनाथ की यह पूजा चमत्कारिक रूप से ‍भाग्य चमकाती है।

|| हर हर महादेव ||

Ravana also told Lakshman about politics and statesmanship:

1- Do not be the enemy of your charioteer, your gatekeeper, your cook and your brother, they can harm you anytime.
2- Do not think you are always a winner, even if you are winning all the time.
3- Always trust the minister, who criticises you.
4-Never think your enemy is small or powerless, like I thought about Hanuman
5- Never think you can outsmart the stars, they will bring you what you are destined to
6- Either love or hate God, but both should be immense and strong.
7--A king who is eager to win glory must suppress greed as soon as it lifts its head.
8--A king must welcome the smallest chance to do good to others, without the slightest procrastination.

Wednesday, November 26, 2014

S. No.
 Name
Meaning 
1AashutoshOne Who Fulfills Wishes Instantly
2AjaUnborn
3AkshayagunaGod With Limitless Attributes
4AnaghaWithout Any Fault
5AnantadrishtiOf Infinite Vision
6AugadhOne Who Revels All The Time
7AvyayaprabhuImperishable Lord
8BhairavLord Of Terror
9BhalanetraOne Who Has An Eye In The Forehead
10BholenathKind Hearted Lord
11BhooteshwaraLord Of Ghosts And Evil Beings
12BhudevaLord Of The Earth
13BhutapalaProtector Of The Ghosts
14ChandrapalMaster Of The Moon
15ChandraprakashOne Who Has Moon As A Crest
16DayaluCompassionate
17DevadevaLord Of The Lords
18DhanadeepaLord Of Wealth
19DhyanadeepIcon Of Meditation And Concentration
20DhyutidharaLord Of Brilliance
21DigambaraAscetic Without Any Clothes
22DurjaneeyaDifficult To Be Known
23DurjayaUnvanquished
24GangadharaLord Of River Ganga
25GirijapatiConsort Of Girija
26GunagrahinAcceptor Of Gunas
27GurudevaMaster Of All
28HaraRemover Of Sins
29JagadishaMaster Of The Universe
30JaradhishamanaRedeemer From Afflictions
31JatinOne Who Has Matted Hair
32KailasOne Who Bestows Peace
33KailashadhipatiLord Of Mount Kailash
34KailashnathMaster Of Mount Kailash
35KamalakshanaLotus-Eyed Lord
36KanthaEver-Radiant
37KapalinOne Wears A Necklace Of Skulls
38KhatvanginOne Who Has The Missile Khatvangin In His Hand
39KundalinOne Who Wears Earrings
40LalatakshaOne Who Has An Eye In The Forehead
41LingadhyakshaLord Of The Lingas
42LingarajaLord Of The Lingas
43LokankaraCreator Of The Three Worlds
44LokapalOne Who Takes Care Of The World
45MahabuddhiExtremely Intelligent
46MahadevaGreatest God
47MahakalaLord Of All Times
48MahamayaOf Great Illusions
49MahamrityunjayaGreat Victor Of Death
50MahanidhiGreat Storehouse
51MahashaktimayaOne Who Has Boundless Energies
52MahayogiGreatest Of All Gods
53MaheshaSupreme Lord
54MaheshwaraLord Of Gods
55NagabhushanaOne Who Has Serpents As Ornaments
56NatarajaKing Of The Art Of Dancing
57NilakanthaBlue Necked Lord
58NityasundaraEver Beautiful
59NrityapriyaLover Of Dance
60OmkaraCreator Of OM
61PalanhaarOne Who Protects Everyone
62ParameshwaraFirst Among All Gods
63ParamjyotiGreatest Splendour
64PashupatiLord Of All Living Beings
65PinakinOne Who Has A Bow In His Hand
66PranavaOriginator Of The Syllable Of OM
67PriyabhaktaFavourite Of The Devotees
68PriyadarshanaOf Loving Vision
69PushkaraOne Who Gives Nourishment
70PushpalochanaOne Who Has Eyes Like Flowers
71RavilochanaHaving Sun As The Eye
72RudraThe Terrible
73RudrakshaOne Who Has Eyes Like Rudra
74SadashivaEternal God
75SanatanaEternal Lord
76SarvacharyaPreceptor Of All
77SarvashivaAlways Pure
78SarvatapanaScorcher Of All
79SarvayoniSource Of Everything
80SarveshwaraLord Of All Gods
81ShambhuOne Who Bestows Prosperity
82ShankaraOne Who Gives Happiness
83ShivaAlways Pure
84ShoolinOne Who Has A Trident
85ShrikanthaOf Glorious Neck
86ShrutiprakashaIlluminator Of The Vedas
87ShuddhavigrahaOne Who Has A Pure Body
88SkandaguruPreceptor Of Skanda
89SomeshwaraLord Of All Gods
90SukhadaBestower Of Happiness
91SupritaWell Pleased
92SuraganaHaving Gods As Attendants
93SureshwaraLord Of All Gods
94SwayambhuSelf-Manifested
95TejaswaniOne Who Spreads Illumination
96TrilochanaThree-Eyed Lord
97TrilokpatiMaster Of All The Three Worlds
98TripurariEnemy Of Tripura
99TrishoolinOne Who Has A Trident In His Hands
100UmapatiConsort Of Uma
101VachaspatiLord Of Speech
102VajrahastaOne Who Has A Thunderbolt In His Hands
103VaradaGranter Of Boons
104VedakartaOriginator Of The Vedas
105VeerabhadraSupreme Lord Of The Nether World
106VishalakshaWide-Eyed Lord
107VishveshwaraLord Of The Universe
108VrishavahanaOne Who Has Bull As His Vehicle
The Mool Mantar (also spelt Mul Mantra) is the most important composition contained within the Sri Guru Granth Sahib, the holy scripture of the Sikhs; it is the basis of Sikhism. The word "Mool" means "main", "root" or "chief" and "Mantar" means "magic chant" or "magic portion".

Together the words "Mool Mantar" mean the "Main chant" or "root verse". It’s importance is emphasised by the fact that it is the first composition to appear in the holy Granth of the Sikhs and that it appears before the commencement of the main section which comprises of 31 Raags or chapters. The Mool Mantar is said to be the first composition uttered by Guru Nanak Dev upon enlightenment at the age of about 30. Being the basis of Sikhism it encapsulates the entire theology of Sikhism. When a person begins to learn Gurbani, this is the first verse that most would learn.

It is a most brief composition encompassing the entire universally complex theology of the Sikh faith. It has religious, social, political, logical, martial and eternal implication for human existence; a truly humanitarian and global concepts of the Supreme power for all to understand and appreciate.
This Mantar encompasses concepts which have been evaluated and proven over many eras (or yugs) and known to be flawless beyond any ambiguity what so ever. The rest of Japji sahib that follows this mantar is said to be a eloboration of the main mantar and that the rest of the Guru Granth Sahib totalling 1430 pages, is a detailed amplification of the Mool Mantar.


Gurmukhi: ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ English: ikk ōankār sat(i)-nām(u) karatā purakh(u) nirabha'u niravair(u) akāl(a) mūrat(i) ajūnī saibhan gur(a) prasād(i).
  • Ik- There is ONE(Ik) reality, the origin and the source of everything. The creation did not come out of nothing. When there was nothing, there was ONE, Ik.
  • Onkaar- When Ik becomes the creative principal it becomes Onkaar. Onkaar manifests as visible and invisible phenomenon. The creative principle is not separated from the created, it is present throughout the creation in an unbroken form, 'kaar'.
  • Satnaam- The sustaining principle of Ik is Satnaam, the True Name, True Name.
  • Kartaa Purakh- Ik Onkaar is Creator and Doer (Kartaa) of everything, all the seen and unseen phenomenon. It is not just a law or a system, it is a Purakh, a Person.
  • Nirbhau- He is devoid of any fear, because there is nothing but itself.
  • Nirvair- He is devoid of any enmity because there is nothing but itself.
  • Akaal Moorat- He is beyond Time (Akaal) and yet it is existing. Its a Form(Moorat) which does not exist in Time.
  • Ajooni- He does not condense and come into any birth. All the phenomenon of birth and death of forms are within it.
  • Saibhang- he exists on its own, by its own. It is not caused by anything before it or beyond it.
  • Gurprasaad- he is expresses itself through a channel known as Guru and it is only its own Grace and Mercy (Prasaad) that this happens.

Maha Mantar

ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥1॥
aadh sach jugaadh sach ॥ hai bhee sach naanak hosee bhee sach ॥1॥ 

Meaning: True In The Primal Beginning. True Throughout The Ages. True Here And Now. O Nanak, Forever And Ever True. ||1||
॥आदिलक्ष्मि॥
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि सदा पालय माम् ॥१॥

॥धान्यलक्ष्मि॥
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि, वैदिकरूपिणि वेदमये
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम् ॥२॥

॥धैर्यलक्ष्मि॥
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद, ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधुजनाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥३॥

॥गजलक्ष्मि॥
जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजनमण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, तापनिवारिणि पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥४॥

॥सन्तानलक्ष्मि॥
अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, स्वरसप्त भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानववन्दित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् ॥५॥

॥विजयलक्ष्मि॥
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर, भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् ॥६॥

॥विद्यालक्ष्मि॥
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमयभूषित कर्णविभूषण, शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥७॥

॥धनलक्ष्मि॥
धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि-धिंधिमि, दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते।
वेदपूराणेतिहास सुपूजित, वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥८॥


Monday, November 24, 2014

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्ड ताण्डवं तनो तुनः शिवः शिवम् ||१||

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||

जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||

 अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||

पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||

इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्


MEANING IN HINDI

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् | डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्ड ताण्डवं तनो तुनः शिवः शिवम् ||१||

जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित क होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें |

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | 
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| 

जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अंनुराग प्रतिक्षण बढता रहे। 

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे | 
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३|| 

जो पर्वतराजसुता(पार्वती जी) केअ विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे। 

जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुहरूपकेसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं।

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः | 
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५|| 

जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् | 
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६|| 

जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके | 
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७|| 

जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है ( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः | 
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८|| 

जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभि प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् | 
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९|| 

जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो को  काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ अखर्वसर्व-

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | 
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०|| 

जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् | 
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११|| 

अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंण अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं। 

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः | 
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२|| 

कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् | 
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३|| 

कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् | 
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४|| 

इस सर्वोत्तम शिवतांडव स्तोत्र का नित्य प्रति मुक्त कंठ से पाठ करने से भरपूर सन्तति-सुख, हरि एवं गुरु के प्रति भक्ति अविचल रहती है, दूसरी गति नहीं होती तथा हमेशा शिव जी की शरण प्राप्त होती है.

पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे | 
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५|| 

प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

Wednesday, November 12, 2014

ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः ॐ
ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः ॐ

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै “न” काराय नमः शिवाय ॥ 1 ॥

मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दार मुख्य बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै “म” काराय नमः शिवाय ॥ 2 ॥

शिवाय गौरी वदनाब्ज बृन्द
सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय ।
श्री नीलकण्ठाय वृषभध्वजाय
तस्मै “शि” काराय नमः शिवाय ॥ 3 ॥

वशिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनीन्द्र देवार्चित शेखराय ।
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मै “व” काराय नमः शिवाय ॥ 4 ॥

यज्ञ स्वरूपाय जटाधराय
पिनाक हस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै “य” काराय नमः शिवाय ॥ 5 ॥

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

Tuesday, November 4, 2014

यक्ष ने प्रश्न किया – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – धैर्य ही मनुष्य का साथ देता है.
यक्ष – यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है?
युधिष्ठिर – दान.
यक्ष – हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – मन.
यक्ष – विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – विद्या.
यक्ष – किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
युधिष्ठिर – अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.
यक्ष – किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता?
युधिष्ठिर – क्रोध.
यक्ष – किस चीज़ को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
युधिष्ठिर – लोभ.
यक्ष – ब्राम्हण होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – शीतल स्वभाव पर.
यक्ष – कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है.
यक्ष – सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर – आरोग्य.
यक्ष – धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है?
युधिष्ठिर – दया.
यक्ष – कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
युधिष्ठिर – सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती.
यक्ष – इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

Saturday, October 18, 2014

The place where The Sarasvati and The Ganga Met is known as Tirth Raaj ( तीर्थ राज ) Also known as Triveni Sangam ( त्रिवेणी संगम )


Tuesday, October 14, 2014








ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

In some Hindu religious books the complete mantra is preceded by oṁ hrauṁ jūṁ saḥ / oṁ bhūrbhuvaḥ svaḥ and followed by oṁ svaḥ bhuvaḥ bhūr / oṁ saḥ jūṁ hrauṁ oṁ, which is its Tantric version

The Maha Mrityunjaya Mantra is said to have been found by Rishi Markandeya. It was a secret mantra, and Rishi Markandeya was the only one in the world who knew this mantra. The Moon was once in trouble, cursed by King Daksha. Rishi Markandeya gave the Mahamritryunjaya Mantra to SatiDaksha's daughter, for the Moon. 

The Day it was originated was Fagun Krishn Paksh's Chaturdashi 
फागुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 
The same day when Lord Shiva gets free from Curse by Daksha and Moon also got cured by the help of Maha Mrityunjaya Mantra. 
On that place Moon built a Temple Called Shri Somnath. (one of the 12 Jotirlingas). 

Few Years later on the very same Day Lord Shiva gets married to Godess Parvati and 
Thats why The same Day is also known as Maha Shivratri

Literal Meaning of the Maha Mrityunjaya Mantra


Word-by-word meaning of the Maha Mrityunjaya Mantra:-

  •  oṁ = is a sacred/mystical syllable in Sanatan Dharma or hindu religions, i.e. Hinduism, Jainism, Buddhism.
  • त्र्यम्बकम् tryambakam = the three-eyed one (accusative case),

त्रि + अम्बकम् = tri + ambakam = three + eye

  • यजामहे yajāmahe = We worship, adore, honour, revere,
  • सुगन्धिम् sugandhim = sweet smelling, fragrant (accusative case),
  • पुष्टि puṣṭi = A well-nourished condition, thriving, prosperous, fullness of life,
  • वर्धनम् vardhanam = One who nourishes, strengthens, causes to increase (in health, wealth, well-being); who gladdens, exhilarates, and restores health; a good gardener,

पुष्टि-वर्धनम् = puṣṭi+vardhanam = पुष्टि: वर्धते अनेन तत् = puṣṭiḥ vardhate anena tat (samas)= The one who nourishes someone else and gives his life fullness.
  • उर्वारुकमिव urvārukamiva = like the cucumber or melon (in the accusative case),
Note: Some people have decomposed the compound urvārukam in this way: 'urva' means "vishal" or big and powerful or deadly; 'arukam' means 'disease'. But urva (उर्वा) does not mean 'vishal' in Sanskrit; rather it is cognate with the Hindi word oorva (ऊर्वा); so this translation is not correct.
  • बन्धनान् bandhanān = "from captivity" {i.e. from the stem of the cucumber} (of the gourd); (the ending is actually long a, then -t, which changes to n/anusvara because of sandhi)
Note: bandhanān means bound down. Thus, read with urvārukam iva, it means 'I am bound down just like a cucumber (to a vine)'.
  • मृत्योर्मुक्षीय mṛtyormukṣīya = Free, liberate From death
मृत्यु: + मुक्षीय = mṛtyuḥ + mukṣīya= from death + free (Vedic usage)
  • मा ∫ मृतात् mā ∫ mṛtāt = (give) me immortality, emancipation
Note: Here are two possible combinations
1) मा + अमृतात् = mā + amṛtāt = not + immortality, nectar
Translation would be: (Free me from death but) not from immortality.
2) मा (माम) + अमृतात् = mā (short form of mām) + amṛtāt = myself + sure, definitely
Translation would be: Free me from certain death.