जो व्यक्ति मंत्र सिद्ध करना चाहते हैं तो वह जिस स्थान पर जाएं तो उस क्षेत्र के रक्षक देव से प्रार्थना करें कि मैं इस स्थान में इतने समय तक ठहरूंगा उसके लिए आज्ञा दो और किसी प्रकार का मेरे ऊपर उपसर्ग हो, तो उसका निवारण करो।
मंत्र सिद्धि का स्थान ऐसा हो जहां मनुष्यों का आगमन न हो, एकांत स्थान जैसे बगीचों, मैदानों, पहाड़ों की गुफाओं, नदी के किनारे, घने जंगल और तीर्थ आदि। जब मंत्र की साधना हेतु प्रवेश करें तो मन-वचन-कर्म से उस स्थान के यक्ष और रक्षक देव से विनय करके मुख से उच्चारण करें कि हे इस स्थान के रक्षक देव, मैं अपने कार्य की सिद्धि के लिए आपके स्थान में आया हूं। आपका आश्रय लिया है। इतने दिन तक मैं यहां रहूंगा। अत: आपके स्थान में रहने के लिए आज्ञा प्रदान करें। अगर मेरे ऊपर किसी प्रकार का उपद्रव, संकट, भय आदि आए तो उसका भी निवारण करना।
जिस मंत्र की साधना करनी हो पहले विधिपूर्वक जितना हर रोज जप सकें उतना प्रतिदिन जप कर सवा लाख बार जप पूरा कर मंत्र साधना करें। फिर जिस कार्य को करना चाहते हैं 108 बार या 21 बार जैसा मंत्र में लिखा हो- उतनी बार जप करने से कार्य सिद्ध होता है।
मंत्र शुद्ध अवस्था में जपना चाहिए। भोजन भी शुद्ध खाना चाहिए। जिस मंत्र में शब्द के आगे 2 का अंक हो तो उस शब्द का दो बार उच्चारण करना चाहिए। पद्मासन में मंत्र साधन में आसान जप करें। बायां हाथ गोद में रखें एवं दाहिने हाथ से जप करें। अगर मंत्र में बाएं हाथ से जप जपना लिखा हो, तो दाहिना हाथ गोद में रखें।
मंत्र जपने बैठें तो सर्वप्रथम रक्षा मंत्र जप कर अपनी रक्षा करें, ताकि आप में कोई उपद्रव, विघ्न न हो सके। अगर मंत्र पूर्ण होने पर देवी-देवता, सांप, बिच्छू, रीछ, भेडिय़ा आदि बन कर डराने आएं तो रक्षा मंत्र जपने से मंत्र साधक के अंग को नहीं छू सकेगा। सामने ही डराता रहेगा। डरें नहीं। प्राण जाने की नौबत आ जाए तो भी नहीं डरे तो मंत्र सिद्ध होकर मनोकामना पूर्ण होगी। बिना रक्षा मंत्र के जाप करने नहीं बैठे। मंत्र साधना करते वक्त सांप वगैरह से डर जाए या मंत्र को बीच में छोड़ दे तो मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है।
मंत्र साधना में धोती, दुपट्टा सफेद रंग का हो या मंत्र में जिस रंग का लिखा हो अच्छा लेना चाहिए।
बिछाने के लिए आसन भी सफेद, पीला या लाल हो या जैसा मंत्र में लिखा हो वह बिछाएं।
मंत्र में माला जिस रंग की लिखी हो तो धोती, दुपट्टा और आसन भी उसी रंग का हो तो उत्तम है, नहीं तो मंत्र में लिखा हो जैसा करें।
मंत्र की साधना के लिए गर्मी का समय ठीक रहता है ताकि सर्दी नहीं लगे। दो जोड़ी कपड़े रखें ताकि मल-मूत्र हेतु जाएं तो दूसरे वस्त्र पहनें। अपवित्र होते ही स्नान करें या बदन पोंछ लें। वस्त्र अपवित्र न हों। मंत्र की सिद्धि जितने दिन करें ब्रह्मचर्य का पालन करें। अपना व्यवसाय भी न करें। केवल भोजन करें जो किसी साथी से मंत्र साधना स्थल पर मंगा लिया करें। अगर भूखे रहने की शक्ति मंत्र साधना काल तक हो, तो श्रेष्ठ है।
मंत्र के अक्षरों का शुुद्धता से धीरे-धीरे उच्चारण करें। अक्षरों को शुद्ध बोलें। मंत्र हेतु दीपक लिखा हो, तो दीपक जलता रहे। धूप लिखी हो तो धूप सामने रखें। जिस उंगली, अंगूठे से जाप करना लिखा हो उससे ही जाप करें। मंत्र साधना जन कल्याण के हितार्थ की जाती है। अपने लोभ, लालच, दूसरों के नुक्सान हेतु नहीं अन्यथा परिणाम विपरीत होते हैं। अनुभवी मंत्र साधक से परामर्श करके ही मंत्र साधना करनी चाहिए।
मंत्र सिद्धि का स्थान ऐसा हो जहां मनुष्यों का आगमन न हो, एकांत स्थान जैसे बगीचों, मैदानों, पहाड़ों की गुफाओं, नदी के किनारे, घने जंगल और तीर्थ आदि। जब मंत्र की साधना हेतु प्रवेश करें तो मन-वचन-कर्म से उस स्थान के यक्ष और रक्षक देव से विनय करके मुख से उच्चारण करें कि हे इस स्थान के रक्षक देव, मैं अपने कार्य की सिद्धि के लिए आपके स्थान में आया हूं। आपका आश्रय लिया है। इतने दिन तक मैं यहां रहूंगा। अत: आपके स्थान में रहने के लिए आज्ञा प्रदान करें। अगर मेरे ऊपर किसी प्रकार का उपद्रव, संकट, भय आदि आए तो उसका भी निवारण करना।
जिस मंत्र की साधना करनी हो पहले विधिपूर्वक जितना हर रोज जप सकें उतना प्रतिदिन जप कर सवा लाख बार जप पूरा कर मंत्र साधना करें। फिर जिस कार्य को करना चाहते हैं 108 बार या 21 बार जैसा मंत्र में लिखा हो- उतनी बार जप करने से कार्य सिद्ध होता है।
मंत्र शुद्ध अवस्था में जपना चाहिए। भोजन भी शुद्ध खाना चाहिए। जिस मंत्र में शब्द के आगे 2 का अंक हो तो उस शब्द का दो बार उच्चारण करना चाहिए। पद्मासन में मंत्र साधन में आसान जप करें। बायां हाथ गोद में रखें एवं दाहिने हाथ से जप करें। अगर मंत्र में बाएं हाथ से जप जपना लिखा हो, तो दाहिना हाथ गोद में रखें।
मंत्र जपने बैठें तो सर्वप्रथम रक्षा मंत्र जप कर अपनी रक्षा करें, ताकि आप में कोई उपद्रव, विघ्न न हो सके। अगर मंत्र पूर्ण होने पर देवी-देवता, सांप, बिच्छू, रीछ, भेडिय़ा आदि बन कर डराने आएं तो रक्षा मंत्र जपने से मंत्र साधक के अंग को नहीं छू सकेगा। सामने ही डराता रहेगा। डरें नहीं। प्राण जाने की नौबत आ जाए तो भी नहीं डरे तो मंत्र सिद्ध होकर मनोकामना पूर्ण होगी। बिना रक्षा मंत्र के जाप करने नहीं बैठे। मंत्र साधना करते वक्त सांप वगैरह से डर जाए या मंत्र को बीच में छोड़ दे तो मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है।
मंत्र साधना में धोती, दुपट्टा सफेद रंग का हो या मंत्र में जिस रंग का लिखा हो अच्छा लेना चाहिए।
बिछाने के लिए आसन भी सफेद, पीला या लाल हो या जैसा मंत्र में लिखा हो वह बिछाएं।
मंत्र में माला जिस रंग की लिखी हो तो धोती, दुपट्टा और आसन भी उसी रंग का हो तो उत्तम है, नहीं तो मंत्र में लिखा हो जैसा करें।
मंत्र की साधना के लिए गर्मी का समय ठीक रहता है ताकि सर्दी नहीं लगे। दो जोड़ी कपड़े रखें ताकि मल-मूत्र हेतु जाएं तो दूसरे वस्त्र पहनें। अपवित्र होते ही स्नान करें या बदन पोंछ लें। वस्त्र अपवित्र न हों। मंत्र की सिद्धि जितने दिन करें ब्रह्मचर्य का पालन करें। अपना व्यवसाय भी न करें। केवल भोजन करें जो किसी साथी से मंत्र साधना स्थल पर मंगा लिया करें। अगर भूखे रहने की शक्ति मंत्र साधना काल तक हो, तो श्रेष्ठ है।
मंत्र के अक्षरों का शुुद्धता से धीरे-धीरे उच्चारण करें। अक्षरों को शुद्ध बोलें। मंत्र हेतु दीपक लिखा हो, तो दीपक जलता रहे। धूप लिखी हो तो धूप सामने रखें। जिस उंगली, अंगूठे से जाप करना लिखा हो उससे ही जाप करें। मंत्र साधना जन कल्याण के हितार्थ की जाती है। अपने लोभ, लालच, दूसरों के नुक्सान हेतु नहीं अन्यथा परिणाम विपरीत होते हैं। अनुभवी मंत्र साधक से परामर्श करके ही मंत्र साधना करनी चाहिए।